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“सख़्त ज़रूरत है” क्यों बेफ़िक्री वाली नींद की, कमी

“सख़्त ज़रूरत है”

क्यों बेफ़िक्री वाली नींद की, कमी सी खलती है,
बस औंधे होकर सोने की, अब सख्त जरूरत है,
क्यो आँखे खुलते ही, उलझे उलझे से मसले है,
सुलझे सुलझे ख्वाबों की, अब सख़्त ज़रूरत है। 	[1]

क्यों इंसान को ही, कुचल रहा यहाँ इंसान है,

“सख़्त ज़रूरत है” क्यों बेफ़िक्री वाली नींद की, कमी सी खलती है, बस औंधे होकर सोने की, अब सख्त जरूरत है, क्यो आँखे खुलते ही, उलझे उलझे से मसले है, सुलझे सुलझे ख्वाबों की, अब सख़्त ज़रूरत है। [1] क्यों इंसान को ही, कुचल रहा यहाँ इंसान है, #शायरी

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