मैं सोचता हूँ हमेशा क्यों न एक गलती और कर दिया जाये तुम्हारे हँसते खेलते चेहरे को क्यों न बेनकाब कर दिया जाये तुम इधर उधर मत देखो जानता हूँ मैं तुम्हें तुम बोलो तो तुम्हारा भी हिसाब कर दिया जाये तुम कोई दूध के धुले तो नहीं और न ही तुम कोई कोरा कागज अगर लिखने बैठु तो पूरा अखबार भर जाये इंजी.रमाकांत श्रीवास कोरबा(छ. ग)