था नयन में अग्न जितना रूदन बन सब बह चला माटी कच्ची फिर से हो चली है साथी फिर से तू हल चला क़ि, ऊसर, परती, बंजर धरती, फिर से लहलहायेगी पसीने की ये जो बूँदें है देखना एक दिन ये सोना उगायेंगी करहाते जो थक पड़े पाँव, तू फिर भी निरन्तर अथक चलते रहना कोई पूछे तो कहना क़ि, नदी का काम है बस बहते रहना क़ि,नव अँकुर फिर से फूटेंगे दासता, निर्धनता कँही पीछे छूटेंगे इन औघड़ हवाओ के संग तू भी बन जा मनचला साथी फिर से तू हल चला #कहानी #दिलसे #poetry #nojotohindi #lovetowrite