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दूर कहीं खड़ी तू दिखती हैं ना जाने कौनसी कमी तुझको

दूर कहीं खड़ी तू दिखती हैं 
ना जाने कौनसी कमी तुझको खलती हैं 
खामोशी की चादर में लिपटे रहती हैं 
क्यूँ तू मुझको कोई आवाज देती नही हैं 
आहट तेरे पैरो की अब होती नही हैं 
क्यू बेडियों में  तू  जकड़ी पड़ी हैं 
परवाज़ अब तेरी दिखती नही हैं 
क्यू हसरतों को तू पूरा करती नही हैं 
मिलने की तरह तू क्यू मुझसे मिलती नही हैं 
 ऐ ज़िंदगी  क्या तेरा मेरा रिस्ता ही नही हैं 
 #zindgi#nojoto#nojotohindi#kalakaksh#poetry
दूर कहीं खड़ी तू दिखती हैं 
ना जाने कौनसी कमी तुझको खलती हैं 
खामोशी की चादर में लिपटे रहती हैं 
क्यूँ तू मुझको कोई आवाज देती नही हैं 
आहट तेरे पैरो की अब होती नही हैं 
क्यू बेडियों में  तू  जकड़ी पड़ी हैं 
परवाज़ अब तेरी दिखती नही हैं 
क्यू हसरतों को तू पूरा करती नही हैं 
मिलने की तरह तू क्यू मुझसे मिलती नही हैं 
 ऐ ज़िंदगी  क्या तेरा मेरा रिस्ता ही नही हैं 
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