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बिन फेरे हम तेरे -5 ©️✍️सतिन्दर बिन फेरे हम तेरे -

बिन फेरे हम तेरे -5

टहलते हुए मेरे हाथों से हवा रोज़ चिर जाती है, ,,,,,,,,,,,,,,,मुझे अपनी ये बात अच्छी नहीं लगती  ,,,,,,,,,,पर चलते हुए हाथ ख़ुद ब ख़ुद ऊपर- नीचे हो आते है।
      
     ,,,,,,,,पार्क के दूसरे हिस्से से बड़ी देर मुझे घूरती हुई इक नज़र आती है और मेरी तरफ़ बढ़ती हुई पूछती है कौन हो तुम मेरे ,?????

          क्यों कुछ कुछ पुराने से लगते हो क्या वास्ता है तुमसे मेरा ? पास आते ही उसके मैं आखें मीच लेता

बिन फेरे हम तेरे -5 टहलते हुए मेरे हाथों से हवा रोज़ चिर जाती है, ,,,,,,,,,,,,,,,मुझे अपनी ये बात अच्छी नहीं लगती ,,,,,,,,,,पर चलते हुए हाथ ख़ुद ब ख़ुद ऊपर- नीचे हो आते है। ,,,,,,,,पार्क के दूसरे हिस्से से बड़ी देर मुझे घूरती हुई इक नज़र आती है और मेरी तरफ़ बढ़ती हुई पूछती है कौन हो तुम मेरे ,????? क्यों कुछ कुछ पुराने से लगते हो क्या वास्ता है तुमसे मेरा ? पास आते ही उसके मैं आखें मीच लेता #Poetry #story #नज़्म #गज़ल #सतिन्दर #shyari #satinder #ghzal #kuchलम्हेंज़िन्दगीke #रेख़्ता #बिनफेरेहमतेरे

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