ताज़ा ग़ज़ल ज़रूरी है महफ़िल के वास्ते , सुनता नहीं है कोई दोबारा सुनी हुई ...
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मुनव्वर राना की ये ग़ज़ल बेशक़ शायरी पसन्द लोगों को ज़ुबानी याद हो...नाम है - दोहरा रहा हूँ बात पुरानी कही हुई...
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ये ऊपर का जो शेर है जिससे मैंने इस ब्लॉग की शुरुआत की है काफ़ी संज़ीदगी है इसमें अगर गौर फ़रमाया जाए...ज़िन्दगी से जुड़ी एक बहुत बड़ी सच्चाई समाई है इसमें...लोगों को हर वक़्त कुछ नया चाहिए होता है, वो आपकी परिस्थिति का मतलब न समझते हुए बस उसके मज़े लेते नज़र आते हैं, देर होती है बस किसी के नए किस्से या किसी की ज़िन्दगी में किसी नई घटना के घटने की, और बस आपकी बात पुरानी हो जाती है, कुछ इस तरह जैसे नहीं कुछ हुआ ही कहाँ है...फ़र्क़ है इस बात को समझने का...आपका इस दुनिया मे आपके सिवा कोई भी नहीं है...दोबारा कहती हूँ, कोई भी नहीं...वो बड़ी संज़ीदा निगाहों से आपकी बातें सुनेंगें, अमल करने का दिखावा भी करेंगें, बहुत से उपाय बताएँगे, राय देंगे, टोकेंगे और भी बहुत कुछ...पर कोई आपको न ही पहले समझता था न ही अब समझेगा, क्योंकि सबकुछ सहा आपने है और आगे भी इससे आप ही गुज़रेंगे...आपकी ज़िंदगी जीने आप के बदले कोई और नहीं आएगा...आप अख़बार नहीं है, न ही ब्रेकिंग न्यूज़ की हेडलाइंस, ये आपकी ज़िंदगी है, किसी के मनोरंजन का साधन नहीं, अक़्सर इस स्तिथि से सभी को गुज़रना पड़ता है,बेशक़ लिखने वाला यूँ ही नहीं लिख रहा और कोई लिखना यूँ ही शुरू नहीं करता...
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