मैं तो हकीकत की मशाल लेकर निकला था। मुझे क्या पता आगे फरेब खड़ा होगा। जब चलने लगा उजाले की ओर, तो मुझे क्या पता हाथ थामे अंधियारा खड़ा होगा। मैंने कहा उससे कि क्या रखा है मोह में एक बार इंसान बनकर देख, मैंने कहा था उससे कि क्या रखा है मोह में एक बार इंसान बनकर देख। मुझे क्या पता था वह मुझे तराजू में बिकती इंसानियत ही दिखा देगा। ---Aman Jain(AJ)