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White हां मैं बुरी हूं! मैं इतनी बुरी हूं जहां से

White 
हां मैं बुरी हूं! मैं इतनी बुरी हूं
जहां से बुराई क्षितिज पार होती
जहां पे अच्छाई अपना मुंह भी ना धोती।
मै इतनी बुरी हूं, हां मैं इतनी बुरी हूं।
कि जितनी बुराई करो वो भी कम है
मिला कर दिखा दो मुझे खाक में
गर जरा सा भी दम है।
है दम गर दिखा दो, मिटा दो, जला दो, बुझा दो, सजा दो, कजा दो
छुपा दो वो सारी हकीकत, जो मेरी सदाकत दिखाती।2

मेरा घर जला दो, मेरा घर जलाने से, माचिस लगाने से,
उस आशियाने के आंगन में गर रौशनी फैल जाती।
मेरा घर जला दो।2
जला दो मगर देख लेना,
जलाते हुए तुमको देखा किसी ने,तो टपके पसीने, लगेंगे नगीने, बड़े ही करीने से, बातें बना करके,मुंह को छुपा करके, मेरी बुराई को जड़ से मिटा करके
तुम भाग आना।2

तुम्हीं तो हो जिसने बनाई मोहब्बत, पढ़ाई मोहब्बत,
सिखाई मोहब्बत, मोहब्बत की बातों को करते हुए तुमने
ये भी सिखाया।
मोहब्बत करो तो है मिलना जरूरी
जिस्म का जिस्म से है मिलना जरूरी
अधर को अधर से मिलाना जरूरी
बदन को बदन से सटाना जरूरी
नहीं तो मोहब्बत, मोहब्बत नहीं है।
मोहब्बत नहीं है तुम्हें जिस्म की गर जरूरत नहीं है
तो तुमने मोहब्बत करी ही नहीं है।2

मोहब्बत रूहानी है बातें पुरानी
ना तुम राधारानी, ना वो खानदानी
ना मीरा दीवानी, मोहब्बत रूहानी
मोहब्बत रूहानी को खा ही गई एक सिंदूरदानी।2
उस सिंदूरदानी की कीमत चुकाते,
रूहानी मोहब्बत मिटाते मिटाते
दिल के जख्म को छुपाते छुपाते
झूठी हंसी को लबों पर सजा के
यहां आ गई हूं, यहां आ गई हूं।
मैं मन भा गई हूं, या सर खा गई हूं
मगर छा गई हूं,
नहीं है पता बस यही जानती हूं, यही जानती हूं कि मैं इतनी बुरी हूं, हां मैं इतनी बुरी हूं ।

©#काव्यार्पण
  हां मैं बुरी हूं by pragya Shukla
#Kavyarpan #Poetry 

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