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आकाश के नीचे एक घर, घर में हैं दो खिड़कियाँ... दो

आकाश के नीचे 
एक घर,
घर में हैं दो खिड़कियाँ...
दो दरवाजा;

मेरा मन है,
वो खुला आसमां....
जिसके नीचे हैं
ख्वाबों का घर बना;

आँखें हैं...
दरवाजा जिसकी और,
है वही खिड़कियां;

दिन भर...
बनी फिरती हैं जो दरवाजा,
देर रात को बन जाती हैं खिड़कियां;

दरवाजे से आती जाती हैं
दुःख सुख और 
कभी कभी घृणा भी;

मगर खिड़कियों से आती हैं 
शांति सुकून
और तन्हाई भी;

खुली रखती हूँ मैं हमेशा खिड़कियां को 
दिन में रखनी पड़ते हैं 
खुले दरवाजे भी;

आकाश के नीचे 
एक घर
घर में हैं दो खिड़कियाँ
दो दरवाजा।।

©रूपा दे
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