-"दीपावली"- जलाते रहे हैं दीपक खुशी का, भुलाते रहे हैं गम हम सभी का, अंधेरों को दीपक ठहरने दिया ना, किसी की मोहब्बत ने मरने दिया ना, चमकती निशाकर न नवरत की दुनिया, चमकती बहुत है अयोध्या की गलियां, कोलाहल खुशी देखकर उस नगर का, लगता है दिल को मिला कोई दिल का, पटाखों से गूंजा माहौल उस जगहे का, समझते जहां सब प्रबलता दीए का, सुन के गर्जन बमों के विस्फोट का, आ गया काल लगता है लंकेश का, लाते हैं प्रतिमा जो उस ईस का, रिद्धि सिद्धि से भरता है घर आदमी का। -"सुधांशु पांड़े"- happy diwlai to all my frinde.