फुरसत का हमें एक पल जो मिला, गुरबत में चले, सिताबों के, साँसे थम गईं, आंखे जम गईं, एक खत जब मिला, किताबों से। दिल को मिली तस्सली थोड़ी, ख्वाबों से हो गई आँख मिचौली, फिर वही याद आयी बात पुरानी, वही चंचल मन, आदत बचकानी, घिर आया वो लफ़्ज़ों का मंजर, एहसासों का वो, सात समुन्दर, शिथिल हुआ मन, बढ़ गया चिंतन, रूबरू जब हुये, जज्बातों से, साँसे थम गईं, आँखे जम गईं, एक खत जब मिला, किताबों से। बढ़ गयी धड़कने, बढ़ गयी आरजू, फिर उसी चाँद से, हो गयी गुफ्तगूं, खिल उठे तन बदन, भूल गए सब सितम, मिट गई दूरियां, मिट गए सब भरम, चल पड़ा कारवां, ढल गया फिर समां, खुशमिजाज हम हुए, जब पढ़ी दास्तां। शाम ढल गयी, हुई रात सुरमयी ख़िदमत में चले, एहसासों के, साँसे थम गईं, आँखे जम गईं, एक खत जब मिला, किताबों से। फुरसत का हमें एक पल जो मिला, गुरबत में चले, सिताबों के, साँसे थम गईं, आंखे जम गईं, एक खत जब मिला, किताबों से। ©कवितांचल (Viveksri) #dryleaf