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#OpenPoetry मुसाफिर हैं हम उस मंजर के, जिसकी कोई र

#OpenPoetry मुसाफिर हैं हम उस मंजर के, जिसकी कोई राह नहीं।खड़े हैं दश्तशहरा मे और कोई हमराह नहीं।थाम ले कोई हाथ मेरा, और ले चले ऐसी जगह।जहाँ मैं हूँ और बो हों और दुनिया की परबाह नहीं।। मुसाफिर
#OpenPoetry मुसाफिर हैं हम उस मंजर के, जिसकी कोई राह नहीं।खड़े हैं दश्तशहरा मे और कोई हमराह नहीं।थाम ले कोई हाथ मेरा, और ले चले ऐसी जगह।जहाँ मैं हूँ और बो हों और दुनिया की परबाह नहीं।। मुसाफिर
pritinagar9688

Priti Nagar

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मुसाफिर #OpenPoetry