#OpenPoetry माना कि बेटे घर के वारिस होते है मगर बेटियों को लावारिस छोड़ना कहां तक जायज है माना कि ख्वाहिशों ने सिर उठाया था मगर तुम्हारी ये बंदिशे कहां तक जायज है माना कि हार जीत जिंदगी का फैसला है मगर तुम मुकदर भी ना आजमाओ ये कहां तक जायज है माना कि हमारी मोहब्बत नाजायज थी मगर ये जात - पात के दायरे कहां तक जायज है माना कि जमीन - जायदाद के बंटवारे होते है मगर इन चंद टुकड़ों के वास्ते रिश्तों का बंटवारा कहां तक जायज है माना कि में तेरी बेवफाई लिखती हूं मगर तुम्हारा यूं छुप - छुप कर पढ़ना कहां तक जायज है। one of ny favorite poetry ❤️❤️ #OpenPoetry #nojoto #life #betiyan #smaj #poem #quotes #hindi #poetry