बीते कई दिनों से, समय बड़ा प्रतिकूल सा हो गया है। डर सा रहता है, ना जाने कब किधर से कोई बुरा समाचार आ जाए। हर ओर हताश और निराश चेहरे ही दिखते हैं। लेखनी भी, मानो डर डर के चलती है। चलती भी कहां है, बस सरकती है कागज पर... सुनो, ये मेरी कोई नई रचना नहीं है, ये मेरा संवाद है, शायद खुद से ही। अच्छा मेरी छोड़ो, कुछ अपनी सुनाओ... तुम्हारी कुशलता मेरे लिये किसी वैक्सीन से कम तो नहीं... बस ये लिखते लिखते... अनायास ही रो पड़ी वो ! ©Nitin Kr. Harit #NitinKrHarit #Rose