न वो आरज़ू मिली,न वो चैन आया। जो हमारा था ही नही,हमने उसे भी गवायॉ। चार दिन की मुलसिफी मे जिए थे हम। कभी खुद रोय कभी दुसरो को रूलाया। #बैचेन