खो गई है मुस्कुराहट होंटो पे शिकवे महज़ रहते हैं। अरमान टूट कर बिखर गए दिल मे उनके अब टुकड़े महज़ रहते हैं प्यार का पाठ पढ़ाने वाले वो हमनवा हमारे हमारे ही प्यार से किनारा कर गए। ज़हन में उनकी बेरुखी के अब सिलसिले महज़ रहते हैं। गुमनाम कर गई मुझे ग़म के अंजान शहर में अब बनकर हम इश्क़ का मोहताज महज़ रहते हैं। घड़ियाँ गुजरती है सदियों की भांति चुभती है यादें पेने काँटों की भांति। आजकल ज़िन्दा तो है ये शरीर मिट्टी का पर अब बनकर एक मुरीद महज़ रहते हैं। वि के विराज़ #darkness #k