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बस तन्हा तन्हा चलना भाया मुझको, जब सफ़र में चलना

बस तन्हा तन्हा चलना भाया मुझको, 
जब सफ़र में चलना शुरू किया है । 

एक दिन मंजिल मिल कर रहेगी, 
यह खुद से वादा करके यकीं किया है।

हौसले बुलंद है कितने ही गम सहकर,
अब तो तन मन सारा बार दिया है।

अब नहीं किसी से कोई उम्मीद कोई गिला,
ख्वाबों को हमने खुद जीना सीख लिया है।

कोई ना पुकारे मुझको मैं अनसुना कर दूंगा, 
लक्ष्य अपना खुद के लिए चुन लिया है।

©Yogendra Nath Yogi
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