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डर है दो दिनों का सफर ,लगता है क्यों बेफिकर? अनज

डर है
 दो दिनों का सफर ,लगता है क्यों बेफिकर?
 अनजान सी डगर में, यू खो गए हम किधर?
अजनबी थी मंजिले ,रास्ते भी  नई थी
  ,फिर क्यों इन रास्तों से ,डर का नाम नहीं आया?
कमी को बदलना चाहा ,दुश्मनों को भी इंसान माना,
पर डर कही हैं कि ये, इंसानियत से खुद ना मर जाना
 मौत से दोस्ती अच्छी ,और जिंदगी से दुश्मनी
 कहीं दोस्ती और दुश्मनी में ,डर है कि खुद ना मिट जाना
 करीबों को पता भी ना चले इन गुमशुदा जिंदगी का 
क्योंकि हमें डर है कि मेरी मौत उन्हें ना गुमशुदा कर दे।
डर है
 दो दिनों का सफर ,लगता है क्यों बेफिकर?
 अनजान सी डगर में, यू खो गए हम किधर?
अजनबी थी मंजिले ,रास्ते भी  नई थी
  ,फिर क्यों इन रास्तों से ,डर का नाम नहीं आया?
कमी को बदलना चाहा ,दुश्मनों को भी इंसान माना,
पर डर कही हैं कि ये, इंसानियत से खुद ना मर जाना
 मौत से दोस्ती अच्छी ,और जिंदगी से दुश्मनी
 कहीं दोस्ती और दुश्मनी में ,डर है कि खुद ना मिट जाना
 करीबों को पता भी ना चले इन गुमशुदा जिंदगी का 
क्योंकि हमें डर है कि मेरी मौत उन्हें ना गुमशुदा कर दे।