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कितने अरमानों से उन्होंने उस बच्चे को पाला होगा,

कितने अरमानों से उन्होंने  उस बच्चे को पाला होगा,  रखकर पत्थर अपने सीने पर उसको सफल करने के लिए घर से निकाला होगा, अपनी  ज़िंदगी को कुर्बान कर देने वाले बाप के बारे में न जाने कब इतनी घटिया सोच बन जाती है, दो वक्त की सिर्फ दो रोटी खाने वाली "मां" न जाने क्यों बोझ बन  जाती है?

©Uday Kanwar
  #एक सच🖋️ R... Ojha  The.pain_writer  अवधेश कुमार  Dr. uvsays  Niaz (Harf)  R K Mishra " सूर्य "