निकल पड़ा मैं सुनी राहों पर मंजिल की तलाश में, इन अंधेरों से होकर ही बिखरेगी उम्मीद की किरणें। हारा नहीं हूं मै जिंदगी से अभी कई उम्मीदें है बाकी, चल रही है मेरी सांसें जब तक मेरा जुनून है बाकी। गमों के इन अंधेरों में उम्मीद की किरणें रही है बाकी, पहुंचूंगा मंजिल पर जरूर कुछ दूरियां रह गई बाकी। हारूंगा ना मै कभी हौसलें ऊंची उड़ानें रही है बाकी, यकीं नहीं तुम्हें तो दुनियावालों ये आसमां है साखी। #last day *ummid