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माँ का आँचल हजार बार गिर जाओ उठाती हैं माँ| गम कित

माँ का आँचल हजार बार गिर जाओ उठाती हैं माँ|
गम कितना भी हो मुस्काती हैं माँ|
वैसे तो लज्जा ही स्त्री का गहना हैं|
सबके सामने ही दूध पिलाती हैं माँ||
पिता के मार और डाँट से बचा के|
अपने आँचल में मुझे छुपाती हैं माँ||

रश्मि आर्य हर गम में मुस्काती हैं माँ......
माँ का आँचल हजार बार गिर जाओ उठाती हैं माँ|
गम कितना भी हो मुस्काती हैं माँ|
वैसे तो लज्जा ही स्त्री का गहना हैं|
सबके सामने ही दूध पिलाती हैं माँ||
पिता के मार और डाँट से बचा के|
अपने आँचल में मुझे छुपाती हैं माँ||

रश्मि आर्य हर गम में मुस्काती हैं माँ......

हर गम में मुस्काती हैं माँ......