महज उम्र थी ग्यारह जब दूर हुआ था पहली बार........ था कुछ अपना तो बस आंसू जब छूटा था परिवार....... हुई शाम तो बस इक ही याद आयी....... नहीं लगा कुछ अच्छा बस आखें भर आयी....... सब लगते अलग अलग मिले थे पहली पहली बार......... था कुछ अपना तो बस आंसू जब छूटा था परिवार......... छुपकर रोते थे किसे दर्द बतायें........ माँ थोड़ी थी जो बिन बोले समझ जायें....... घर जल्दी ही सो जाने वाले जगते थे मेरे सब यार..... था कुछ अपना तो बस आंसू जब छूटा था परिवार...... खाने पर उस दिन सब रोये थे....... उस दिन सब माँ वाला खाना खोये थे....... घर माँ रोई हम रोये याद आती थी बार बार.......... था कुछ अपना तो बस आंसू जब छूटा था परिवार....... पापा याद आए घर याद आया.......... उस दिन भाई से लड़ाई भी नहीं कर पाया....... माँ की ममता याद आती है व माँ का प्यार........... महज उम्र थी ग्यारह जब दूर हुआ था पहली बार...... -विकाश शुक्ल #feather