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Ram ईश्वर...... ईश्वर..... अंजान की आँखों से

Ram  

ईश्वर...... ईश्वर..... 

अंजान की आँखों से लगातार आँसू बहे जा रहे थे....... 
एक छोटी बच्ची के चेहरे पर मुस्कान थी...... 
क्योंकि वह ईश्वर और धर्म का अर्थ समझ चुका था....... 
जबकि वह बच्ची काफी दिनों से उदास थी......

अंजान एक 30 बरस का युवक था उसका धर्म करम मे अत्यंत विश्वास था वह रोज नियम से शहर के एक प्राचीन मंदिर मे दर्शन करने जाता था वँहा लंबी लाइन मे लगकर लगभग 20 से 25 मिनट मे उसको भगवान के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता था लेकिन वँहा चढ़ावा चढ़ाने के बावजूद उसके मन को शांति न मिलती थी वह दर्शन करने के पश्चात भी बुझे मन से घर की ओर चल देता था यह उसका रोज का नियम बन चुका था अंजान अक्सर सोचा करता था कि वह रोज ईश्वर के दर्शन करता है प्रसाद चढ़ाता है किंतु उसके मन को संतोष क्यों नही मिलता..........
Ram  

ईश्वर...... ईश्वर..... 

अंजान की आँखों से लगातार आँसू बहे जा रहे थे....... 
एक छोटी बच्ची के चेहरे पर मुस्कान थी...... 
क्योंकि वह ईश्वर और धर्म का अर्थ समझ चुका था....... 
जबकि वह बच्ची काफी दिनों से उदास थी......

अंजान एक 30 बरस का युवक था उसका धर्म करम मे अत्यंत विश्वास था वह रोज नियम से शहर के एक प्राचीन मंदिर मे दर्शन करने जाता था वँहा लंबी लाइन मे लगकर लगभग 20 से 25 मिनट मे उसको भगवान के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता था लेकिन वँहा चढ़ावा चढ़ाने के बावजूद उसके मन को शांति न मिलती थी वह दर्शन करने के पश्चात भी बुझे मन से घर की ओर चल देता था यह उसका रोज का नियम बन चुका था अंजान अक्सर सोचा करता था कि वह रोज ईश्वर के दर्शन करता है प्रसाद चढ़ाता है किंतु उसके मन को संतोष क्यों नही मिलता..........

ईश्वर..... अंजान की आँखों से लगातार आँसू बहे जा रहे थे....... एक छोटी बच्ची के चेहरे पर मुस्कान थी...... क्योंकि वह ईश्वर और धर्म का अर्थ समझ चुका था....... जबकि वह बच्ची काफी दिनों से उदास थी...... अंजान एक 30 बरस का युवक था उसका धर्म करम मे अत्यंत विश्वास था वह रोज नियम से शहर के एक प्राचीन मंदिर मे दर्शन करने जाता था वँहा लंबी लाइन मे लगकर लगभग 20 से 25 मिनट मे उसको भगवान के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता था लेकिन वँहा चढ़ावा चढ़ाने के बावजूद उसके मन को शांति न मिलती थी वह दर्शन करने के पश्चात भी बुझे मन से घर की ओर चल देता था यह उसका रोज का नियम बन चुका था अंजान अक्सर सोचा करता था कि वह रोज ईश्वर के दर्शन करता है प्रसाद चढ़ाता है किंतु उसके मन को संतोष क्यों नही मिलता.......... #मेरी_डायरी #निखिल_कुमार_अंजान