कोई कैसे चले की निभा के चले अहले दुनिया से भी बच बचा के चले ये बेफिक्री भी है बस दिखाने की है आदमी है की फिकरे छुपा के चले ये दिखावे का पर्दा है उठ जाएगा झोंके भी तेज़ गर जो हवा के चले बोलना आदमी का जरूरी भी है चुप रहे जो उसे सब दबा के चले मोल करना तो दिल से न कम में कभी लोग आये बहुत आजमा के चले बात ये भी नही है बात वो भी नही है कह के इतना ही वो मुस्कुरा के चले मीटर- बहर ए मुतदारिक मुसम्मन सालिम अविनाश कुमार