कोरोना महामारी:- काल भेष धरे ये कोरोना महामारी, प्रभु जी आन पड़ी है विपदा भारी। प्रकृति से खिलवाड़ करअपराधी बने क्षमा करो जगदम्बा भूल-चूक हमारी। कैसी इम्तिहान की विकट घड़ी आई, सूझे न रास्ता व्यथित हृदय देता दुहाई। रुदन पसरा देखो मरघट सा चारों ओर, जाने कब किसकी है अंतिम बिदाई।। टेढ़ी-मेढ़ी सी है ये जीवन की डगर धूप-छांव से भरा बड़ा लम्बा सफर। उलझे रहे हम सब यूंही खुद मे सदा जाने कब चुपके से हो गई ये सहर।। मार झेलते रहे हम तो किस्मत की, जो बच गये तो! कहर कुदरत की। दूर तलक रास्ता ही रास्ता है सामने मंज़िल मिल जाय हमें रहमत की।। बैठी सोचती हूँ आज अपने गुनाहों को, सताया है बहुत हमने भी बेजुबानों को। प्रकृति के आँचल को तार-तार किया है, ख़ाक मे मिला दिया इंसाँ ने खजानों को।। अब पछताने के सिवा बता रखा क्या है? विनाश की आँधी चली जो देखता क्या है? हरा-भरा करदे तू फिर से इस गुलिस्तां को, देर न कर कदम बढा़ यूं सोचता क्या है?? ©ArchanaTiwari_Tanuja #MessageToTheWorld 27/04/2021 कोरोना महामारी:- काल भेष धरे ये कोरोना महामारी, प्रभु जी आन पड़ी है विपदा भारी। प्रकृति से खिलवाड़ करअपराधी बने