तुम बिछुड़ तो गए थे यही पर कभी आज फिर से मिले आमने सामने एक दिन उसने मुझसे कहा था यही आओ बैठे कभी आमने सामने उस गली में मेरा घर किराये पे है और रहते भी है आमने सामने कैसे नजरें मिली और क्या क्या हुआ तीर कैसे चले आमने सामने उनकी महफ़िल में भी यूँ निज़ामत मेरी अर्ज़ कैसे करें आमने सामने भीगी पलको से सुनते रहे हैं गजल और बैठे भी है आमने सामने कुँवर