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क्या जीवन में प्रेम ही सबकुछ है? प्रेम एक मानवीय भ

क्या जीवन में प्रेम ही सबकुछ है?
प्रेम एक मानवीय भावना है। इसके लिए आपको स्वर्ग जाने की जरूरत नहीं है। हृदय की मिठास को ही प्रेम कहते हैं।

मेरे लिए यह परीक्षा की घड़ी थी और उसी समय से मैं खुद से बिना किसी लाग-लपेट के सच बोलने की कोशिश करने लगी। सद्‌गुरु के साथ ईशा योग करने के बाद मैं यह जान सकी हूं कि इससे आप स्वयं को दर्पण की तरह साफ देखने लगते हैं।

मेरे मन में ये विचार उछल रहे थे तभी मैंने घड़ी पर नजर डाली। आधी रात का दो बीस बजा देख कर मैं चौंक गयी। हम अपने निजी टापू पर धधकती आग के पास साथ बैठे आराम से बातें कर रहे थे और समय जैसे भागा जा रहा था।

कुछ पल रुककर उन्होंने कहा, ‘प्रेम उन अनेक सुंदर भावनाओं में से एक है जो मनुष्य अनुभव कर सकता है। कई संस्कृतियों या तथाकथित सभ्यताओं ने प्रेम को दबा दिया है। बहुत-से लोगों ने प्रेम को स्वर्ग भेज देने की पुरजोर कोशिश की है। प्रेम पृथ्वी की भावना है, उस हृदय की जो आप हैं। प्रेम एक मानवीय भावना है। इसके लिए आपको स्वर्ग जाने की जरूरत नहीं है। हृदय की मिठास को ही प्रेम कहते हैं। ‘जब आप दुनिया को गलत और सही, अपना और पराया, भगवान और हैवान में बांट देती हैं तो आपका प्रेम शर्तों की बैसाखियों पर चलता है। सरल शब्दों में कहूं तो अनुभव के स्तर पर आप इन चार चीजों का मिश्रण हैं- तन, मन, भावना और ऊर्जा। फिलहाल इन चार चीजों के मिश्रण को ही आप ‘मैं’ कहती हैं।

क्या जीवन में प्रेम ही सबकुछ है? प्रेम एक मानवीय भावना है। इसके लिए आपको स्वर्ग जाने की जरूरत नहीं है। हृदय की मिठास को ही प्रेम कहते हैं। मेरे लिए यह परीक्षा की घड़ी थी और उसी समय से मैं खुद से बिना किसी लाग-लपेट के सच बोलने की कोशिश करने लगी। सद्‌गुरु के साथ ईशा योग करने के बाद मैं यह जान सकी हूं कि इससे आप स्वयं को दर्पण की तरह साफ देखने लगते हैं। मेरे मन में ये विचार उछल रहे थे तभी मैंने घड़ी पर नजर डाली। आधी रात का दो बीस बजा देख कर मैं चौंक गयी। हम अपने निजी टापू पर धधकती आग के पास साथ बैठे आराम से बातें कर रहे थे और समय जैसे भागा जा रहा था। कुछ पल रुककर उन्होंने कहा, ‘प्रेम उन अनेक सुंदर भावनाओं में से एक है जो मनुष्य अनुभव कर सकता है। कई संस्कृतियों या तथाकथित सभ्यताओं ने प्रेम को दबा दिया है। बहुत-से लोगों ने प्रेम को स्वर्ग भेज देने की पुरजोर कोशिश की है। प्रेम पृथ्वी की भावना है, उस हृदय की जो आप हैं। प्रेम एक मानवीय भावना है। इसके लिए आपको स्वर्ग जाने की जरूरत नहीं है। हृदय की मिठास को ही प्रेम कहते हैं। ‘जब आप दुनिया को गलत और सही, अपना और पराया, भगवान और हैवान में बांट देती हैं तो आपका प्रेम शर्तों की बैसाखियों पर चलता है। सरल शब्दों में कहूं तो अनुभव के स्तर पर आप इन चार चीजों का मिश्रण हैं- तन, मन, भावना और ऊर्जा। फिलहाल इन चार चीजों के मिश्रण को ही आप ‘मैं’ कहती हैं।

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