मेरे शब्द स्वरूपी सतगुरू हैं, राधास्वामी के मंजूरे नज़र । वे मेहर दृष्टि जिसको हेरे,पहुँचातें हैं उसको निज घर ।।टेर।। जो दर्श करे दिल दीदे से, छवि बस जाये उसके अंतर । नश्वर छवियाँ सब धुल जावें,घट में पावे स्वामी की ख़बर (1) वह त्याग चले पिण्ड ब्रह्माण्ड को,सूरत चढ़ जावे उसकी अधर । निज महल में वो बासा पावे ,राधास्वामी द्याल मिले निज वर (2) वे शब्द गोद में झूल रहे, हरदम बसते हैं इधर उधर । सूरत तजे काल माया डोरी, उन संग भवसागर जाती तर (3) जो अब भी संग में नहीं लागे,खो डालेगी वो अपनी क़दर । राधास्वामी द्याल को नहीं पावे ,ठोकर खावेगी वो दर दर (4) *राधास्वामी* राधास्वामी प्रीति बानी 4-283 छवि बस जाए ।