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*प्रदूषण* पता नही क्यूँ ये शहर धुआँ हो गया, न चाह


*प्रदूषण*
पता नही क्यूँ ये शहर धुआँ हो गया,
न चाहते हुए भी मौत का कुआ हो गया!
आवारगी मे भी हवा ने रुख मुख मोड़ लिया
कुछ की गलतियों ने सारा शहर तोड़ दिया
वहां आसमान आज भी लाल है
यहा दो वक्त की रोटी का भी मलाल है
नही दिख रहा चैन ऊँचे मकानों में
कुछ न बचा अब यहाँ कमाने में
लौटने का वक्त क्यूँ दूर हो गया
गंदगी मे शहर क्यूँ मजबूर हो गया
क्या कहूँ मै इस हाल का
परेशान तो वो भी है कोठी लाल का
सरकार को अफसोस है या नही
झोपड़ी वाला रंग देख मदहोश हो गया
rahulforchange

*प्रदूषण*
पता नही क्यूँ ये शहर धुआँ हो गया,
न चाहते हुए भी मौत का कुआ हो गया!
आवारगी मे भी हवा ने रुख मुख मोड़ लिया
कुछ की गलतियों ने सारा शहर तोड़ दिया
वहां आसमान आज भी लाल है
यहा दो वक्त की रोटी का भी मलाल है
नही दिख रहा चैन ऊँचे मकानों में
कुछ न बचा अब यहाँ कमाने में
लौटने का वक्त क्यूँ दूर हो गया
गंदगी मे शहर क्यूँ मजबूर हो गया
क्या कहूँ मै इस हाल का
परेशान तो वो भी है कोठी लाल का
सरकार को अफसोस है या नही
झोपड़ी वाला रंग देख मदहोश हो गया
rahulforchange