अब और ना सही जाती ये हिज्र की रात, निगाहों को है आज भी उससे वस्ल का ख्वाब, बस इतनी है आजमाईश उनसे जनाब, की चाँद के साये में बैठ कर वो थामे मेरा हाथ.. . #जलज अब और ना सही जाती ये हिज्र की रात, निगाहों को है आज भी उससे वस्ल का ख्वाब, बस इतनी है आजमाईश उनसे जनाब, की चाँद के साये में बैठ कर वो थामे मेरा हाथ... #जलज