तू मिले न मिले मगर मुझे तुझे पाने का अरमान बहुत है ग़ुस्से से ही सही मगर मुझे देखा करो तुम्हारा यही अहसान बहुत है मेरे मज़ाकिया लहजे को भी ग़लत समझता है है दोस्त मेरा पर बद गुमान बहुत है मौत के नाम से वजूद कांप जाते हैं जिब्रान फिर ये किसने कहा मरना आसान बहुत है