मंजिलों पे डालों पर्दे ,सफ़र पे निकल चलो टूटी फूटी पगडंडियों पे, गिरो पडो उठे चलो क्या छूटा,क्या मिला , इसकी परवाह न करो दुःख मिला या सुख मिला,इसकी चर्चा न करो समय को व्यर्थ करके, जिंदगी जीते चलों या जिंदगी को व्यर्थ करके, समय गिनते चलों ग़लती माफी भूल सब , छोड़ दो अतीत पे गेरबंदिशो में जीयो, सब लूटा दो प्रीत पे आख़िर में मृत्यु ,एक प्रश्न बनकर आएगी जिंदगी तुम्हें ,ज़बाब देकर चली जाएंगी ---------अनुराग सक्सेना  मंजिलों पे ---