#OpenPoetry हर रोज ये उम्र रेत की तरह मुट्ठी से फिसलती जाती है, अब ख़ुदा जाने किसकी मुट्ठी में कितनी रेत बची है। घनश्याम शर्मा 'जस्सल' : 24/07/2019 Soumya Jain