चाहने वाले हमारे भी, कहीं तो होंगे इस जहां में ना सही, उस जहां में तो होंगे।। रही होगी कुछ बात तो हम में भी, रश्क़ रखने वाले हमसे,यूँ ही तो जले नहीं होंगे।। कुछ पहलू सिक्के के अनदेखे भी होंगे गलत हर बार हमीं तो नहीं होंगे।। होगी शायद दुनियादारी की मजबूरी कुछ उनकी भी इतने नासमझ तो नहीं वो कि हमें समझे नहीं होंगे।। कुसूर कुछ तो मंजिल के भी होंगे रास्ता हर बार तो हम भटके नहीं होंगे।। दर्द कुछ हमने भी तो सहे होंगे निशां ये बदन के सारे ,गोदने से तो बने नहीं होंगे।। कुछ तो जला जरूर होगा दरम्यान हमारे ये ढ़ेर राख के ,यूँ ही तो लगे नहीं होंगे।। यूँ ही सजे है अब तक मर्तबानों में शायद सिक्कों के मोल तो हम बिके नहीं होंगे।।