कविता जन्म दिया मां बाप ने तो, यह प्यारा जहान मिला, बड़े भाइयों का प्यार मिला,सभी रिश्तेदारों का मान सम्मान मिला, भेजा तुमने शिक्षा लेने तो मैंने भी अच्छे से, पढ़ लिख कर तुम्हारा ऊंचा नाम किया, तेरी खुशी के लिए मैंने भी बेटी से बहु बनना स्वीकार किया, सुसराल में आकर मैंने भी अपनी खुशियों का त्याग किया और सब रिश्तों का आदर सत्कार किया,तन तो क्या मन भी दें दिया, आत्मा और यौवन भी दे दिया, प्यार दिया सन्तान भी दी पूरा किया परिवार,सोचा कर लूं अपना भी एक सपना साकार,अध्यापिका बन ज्ञान बांटू और पाऊं सम्मान,समृद्धि लाऊं घर में भी और बड़ा दूं पति का मान,लेकिन अहंकारी पति समझ मुझे नहीं पाया है, अहंकार की ज्वाला में बहकर उसने मुझे ठुकराया है, यह कैसा पति परमेश्वर है जो मेरी पीड़ा समझ नहीं पाया ,और इस जग में उसने मुझे अबला और लाचार बनाया है, सिन्दूर का लेकर सहारा उसने मेरी आत्मा का भी बलात्कार किया, झूठे इल्जाम लगा कर उसने मुझको जग में शर्मसार किया,सब कुछ ले लिया मेरा फिर मुझको ही धिक्कार दिया, तुम कहते हो मां बाप, मुझे वापिस उसके पास चली जाऊं मैं, उससे लाख गुना बेहतर है आपकी गोदी में मर जाऊं मैं, क्यूं जाऊं मैं उसके पास मैं वापिस ताकि वो नोचें मेरा शरीर, जन्म दिया मां बाप ने तो अब इन्साफ भी दिला दो मुझको, उसके पास भेजने से अच्छा है कब्र में जिंदा, दफना दो मुझको, जो ज़ख्म लगे हैं मेरे मन को उनको दिखाना मुश्किल है जो दर्द सहे है मेरे दिल ने उनको दिखाना मुश्किल है, मेरा सहयोग करने वालों का कर्ज चुकाना मुश्किल है, लेखक चाहे अपनी कलम तोड़ दे पर लोगों की सोच, को बदलना मुश्किल है, कोशिश कर कर थक गए हैं हम लेखक पर बदलाव लाना मुश्किल है। Meenakshi Sharma बेटी का दर्द