किसी मोड़ पर छोड़ कर चली जाएँगी मैं अपनी साँसों पर भरोसा कैसे करूँ न खबर मेरी होगी, न शहर मेरे होंगें न किसी के दिल में ज़हर मेरे होंगें न मेरा कुछ रहेगा, न किसी का मैं तो खुद पर गुरूर कैसे करूँ वक्त रेत सा फिसल रहा हैं उगा सूरज भी ढल रहा हैं किस किस को जाकर ये कहूँ बेहतर यही हैं कि मैं, मैं बनकर रहूँ Arun Vyas -AV