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काँटों में लिपटे हैं गुलाब फिर भी खिलखिलाते हैं

काँटों में लिपटे हैं गुलाब 
फिर भी खिलखिलाते हैं 
कुदरत सिखाती है जीना 
फिर भी सीख न पाते हैं 
ज्योति कुदरत
काँटों में लिपटे हैं गुलाब 
फिर भी खिलखिलाते हैं 
कुदरत सिखाती है जीना 
फिर भी सीख न पाते हैं 
ज्योति कुदरत

कुदरत