भाग्य की लेखी अटल है उसको मिटा सकता नही पर कोशिशों के दीप को चिंगारी देना कब मना है भाग्य की हो क्यों फिक्र जो है लिखा होगा वही ये जीत क्या है हार क्या हर कोई पथ पर चला है दीप की विजय सुबह तक खोती देखी है मैंने तो पर पतिंगे के मिले सुबह भी मुझको निशां है। वीर अभिमन्यु को देखो जीत वो रण न सका था पर अमरता पाके जग में हारकर विजयी हुआ है नाम स्वर्णिम पृष्ठ पर अकिंत सदा उनके मिले जो भूलकर अच्छा बुरा कर्तव्य पथ पे फना है ऋषभ तोमर भाग्य और कर्म भाग्य की लेखी अटल है उसको मिटा सकता नही पर कोशिशों के दीप को चिंगारी देना कब मना है भाग्य की हो क्यों फिक्र