रात वो खामोश थी , नींद मेरी चिल्लाती रही हंसते-मुस्कुराते चेहरे थे वो , और मैं दर्द में कहराती रही नोचा था कण-कण से मुझे , मैं रोकना उनको चाहती थी कितनी कोशिश करने पर भी , वो हर बार मुझे हराती थी टूटते-बिखरते होंगे लोग , पर मैं पल-पल मरती रही होने को कुछ समय के लिए , दुनिया निर्भया-निर्भया करती रही अब भी ना जाने कितनी जिंदगी , निर्भया या दामिनी बन जाती हैं फिर कुछ दिन का कैंडल मार्च , या कोर्ट कोई सजा सुनाती है पर मैं किसको बयां करू , जो डर मुझे सताता है अब तो मन मेरा भी , बेटी होने से कतराता है आज फिर आँख खुली , एक ओर खंजर ने चीरा क्या गल्ती थी उस डॉक्टर की, जो नहीं समझे उसकी पीड़ा जंग लग गई समाज को , मानवता खोखली हो गई जलती आग की सिसकियों में, इक बेटी फिर विदा हो गई आखिर कब तक यूँ ही , डर डर कर हम जीते रहे क्या उनके कोई परिवार नहीं , जो करतूत ऐसे करते रहें अंधा हो गया हैं कानून , न्याय बेबस सा पड़ा हैं हवस हो गई चारों ओर , भगवान भी मोन खड़ा हैं पर मैं किसको बयां करू , जो डर मुझे सताता है अब तो मन मेरा भी , बेटी होने से कतराता है ©kanak lakhesar🖤 ... #kanaklakhesar #Life_experience #womensafety #Rape #Nojoto#Poem