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बंजर की ज़मीं सा दिल था ये, बन नमी वो बारिश की आई,

बंजर की ज़मीं सा दिल था ये,
बन नमी वो बारिश की आई,
ये ख़बर भी मुझ तक ना पहुंची,
कितना वो सुकू संग में लाई,

जो बिखरा सा हर मंजर था,
लगे सीने में कोई खंजर था,
हर जख्म मेरा भरने सा लगा,
मानो बन के वो मरहम आई!

©Ashutosh Kumar
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