रंग और रूप रंग और रूप के फेर में उलझे सब यहां अपने गैर में उलझे जिनको समझ आ गयी दुनिया वो भी मगर ज़रा देर में उलझे इक घायल रस्ते पर मर गया देखने वाले अपनी खैर में उलझे कोई जुल्मों के साये में घिरा है और लोग तो ज़बर जैर में उलझे कुछ गम के भंवर में डूबे यहां कुछ मजे की इक सैर में उलझे इन्सानियत को भूल से गये हैं कुछ लोग मज़हबों की बैर उलझे रंग और रूप .....उलझे आमिल Rang or roop ke fair m uljhe Sab yahaa apne gair m uljhe Jinko samjh aa gyi duniya Wo bhi magar zra derr m uljhe Ek ghayal raste pr marr gya Dekhne wale apni hi khair m uljhe