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शिक्षा, शिक्षा रहीं नहीं, व्यापार बना अब डाला है।

 शिक्षा, शिक्षा रहीं नहीं, 
व्यापार बना अब डाला है। 
मंदिर कहलाता था विद्यालय, 
अब वहाँ स्वार्थ ने बागडोर संभाला है। 
व्यवहारिक शिक्षा का पतन हुआ, 
संस्कार जीवन में कैसे आयेंगे। 
रटने की पद्धति का जमाना है, 
नवाचार कैसे कर पायेंगे।
 शिक्षा, शिक्षा रहीं नहीं, 
व्यापार बना अब डाला है। 
मंदिर कहलाता था विद्यालय, 
अब वहाँ स्वार्थ ने बागडोर संभाला है। 
व्यवहारिक शिक्षा का पतन हुआ, 
संस्कार जीवन में कैसे आयेंगे। 
रटने की पद्धति का जमाना है, 
नवाचार कैसे कर पायेंगे।

शिक्षा, शिक्षा रहीं नहीं, व्यापार बना अब डाला है। मंदिर कहलाता था विद्यालय, अब वहाँ स्वार्थ ने बागडोर संभाला है। व्यवहारिक शिक्षा का पतन हुआ, संस्कार जीवन में कैसे आयेंगे। रटने की पद्धति का जमाना है, नवाचार कैसे कर पायेंगे। #Poetry #Education #HindiPoem #hindipoetry #aasthagangwar #socialpoem