दिन गुजरते ही अलसाई शाम में तेरी याद आती है कसिड के लाये हुए हर पैगाम में तेरी याद आती है हम तुझे भुले नहीं मैख़ाने में डूबकर भी होठों से लगने वाले हर जाम में तेरी याद आती है तेरी पाकीज़गी पर जो हमने तोहमत लगाया अपने गुनाहों के हर अंजाम में तेरी याद आती है मिलते वाले बहुत है पर तेरे जैसा कोई नहीं हमसे जुड़ने वाले हर नाम में तेरी याद आती है