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“वक़्त जाता रहा” नाकामियों को अपनी संवारते ही रहे ह

“वक़्त जाता रहा”
नाकामियों को अपनी संवारते ही रहे हम.
खंडहरों में जिंदगी तलाशते ही रहे हम.
उठते रहें हैं अक्सर तूफां बीती यादों के.
सुबह शाम यादों को बुहारते ही रहे हम.
न की परवा किसी ने रत्तीभर भी हमारी.
मारे दर्द के दिन रात कराहते ही रहे हम.
अपनी मदद को कोई इक बार भी न आया.

“वक़्त जाता रहा” नाकामियों को अपनी संवारते ही रहे हम. खंडहरों में जिंदगी तलाशते ही रहे हम. उठते रहें हैं अक्सर तूफां बीती यादों के. सुबह शाम यादों को बुहारते ही रहे हम. न की परवा किसी ने रत्तीभर भी हमारी. मारे दर्द के दिन रात कराहते ही रहे हम. अपनी मदद को कोई इक बार भी न आया.

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