#WorldTheatreDay सब लोग दिखावा करते हैं अपने आप को शरीफ होने का हमारी खामोशी को लोग हमारी बेवकूफी समझते हैं हम बोलते कम हैं पर ना समझ नहीं है खुदा सब को नाचता है अपनी उंगली पर हम सब कठपुतली हैं उसके इसारों का कुछ लोग खुद को खुदा समझते हैं इस रूहे जमीन का, हम सब मिट्टी के पुतले हैं कुछ भी हस्ती नहीं हमारी एक वायरस ने समझा दिया क्या औकात है हमारी इस जमीन पर जो परिंदों को करते थे कैद आज खुद कैदी बन बैठें हैं #World_Theatre_Day