पतझड़ों में शजर ठूँठ होता गया | आँधियों में दिया ज्योति खोता गया | ज़िन्दगी कुछ निशाँ छोड़ मरघट चली-- अश्रु कितने दृगों में पिरोता गया || #जिन्दगी_का_सच