चौराहों पर पड़े हुए एक ही पथ पकड़ना है हमे, इसका नाम है तो जिंदगी। लम्हा लम्हा जीते हैं इस मूड पर ही, कितनी ब्याकुलपन को पिछड़ते हुए नई मंजिल की ओर। कुछ फूल फिंगे, कुछ कांटे भी बिछा दिए, फिर भी टला नहीँ मन, घूम घूम कर यह मन बिखर गया, फिर भी चलता गया तन हर दर्द को सह कर लहू की नदी पर नाव बनते। स्मृतियाँ खिल उठी, सपने बिखरती गयीं, लम्हा लम्हा चलते चला यूँ ही । ******************