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पल्लव की डायरी धरती आसमान का कही छोर नही कभी मिलते

पल्लव की डायरी
धरती आसमान का कही छोर नही
कभी मिलते हो ऐसा कोई ठोर नही
आकर्षण फिर भी कम नही
लुटा देता है अपनी सत्ता को
धरती के प्यार में
दिन रात कराने भेज देता है
रोज सूरज और चांद को
प्यार का दीदार धरती का कुछ कम नही
अर्घ देता छठ को और ब्रत करता करवा चौथ को
वासना नही
प्यार में पूरा झुकता धरती के सम्मान में
यू ही धरती को माँ सूरज को पिता कहते है
सारी सृष्टी के जनक दोनों कहलाते है
                    प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव" प्यार में धरती के सम्मान में झुकता आसमान
पल्लव की डायरी
धरती आसमान का कही छोर नही
कभी मिलते हो ऐसा कोई ठोर नही
आकर्षण फिर भी कम नही
लुटा देता है अपनी सत्ता को
धरती के प्यार में
दिन रात कराने भेज देता है
रोज सूरज और चांद को
प्यार का दीदार धरती का कुछ कम नही
अर्घ देता छठ को और ब्रत करता करवा चौथ को
वासना नही
प्यार में पूरा झुकता धरती के सम्मान में
यू ही धरती को माँ सूरज को पिता कहते है
सारी सृष्टी के जनक दोनों कहलाते है
                    प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव" प्यार में धरती के सम्मान में झुकता आसमान