अफ़साना जीत पांव में तेरे, हार उधर रख दी है । सर इधर रखा है, दस्तार उधर रख दी है । वार करना है, गले मिलना है, क्या करना है । अब तू ही बता दोस्त, तलवार उधर रख दी है । पहले कमरा तेरी यादों से भरा था लेकिन । अब जो हर चीज थी, बेकार उधर रख दी है । by# jahanzaib sahir # jahanzaib sahir poetry #