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अफ़साना जीत पांव में तेरे, हार उधर रख दी है । सर इ

अफ़साना जीत पांव में तेरे, हार उधर रख दी है ।

सर इधर रखा है, दस्तार उधर रख दी है ।

वार करना है, गले मिलना है, क्या करना है ।

अब तू ही बता दोस्त, तलवार उधर रख दी है ।

पहले कमरा तेरी यादों से भरा था लेकिन ।

अब जो हर चीज थी, बेकार उधर रख दी है ।

by# jahanzaib sahir # jahanzaib sahir poetry #
अफ़साना जीत पांव में तेरे, हार उधर रख दी है ।

सर इधर रखा है, दस्तार उधर रख दी है ।

वार करना है, गले मिलना है, क्या करना है ।

अब तू ही बता दोस्त, तलवार उधर रख दी है ।

पहले कमरा तेरी यादों से भरा था लेकिन ।

अब जो हर चीज थी, बेकार उधर रख दी है ।

by# jahanzaib sahir # jahanzaib sahir poetry #
azeemkhan5403

Azeem Khan

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# jahanzaib sahir poetry #

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