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*वक्त बदलता नहीं, इंसान बदल जाते है,* *बंद आँखों स

*वक्त बदलता नहीं, इंसान बदल जाते है,*
*बंद आँखों से तो अंधेरे ही नजर आते है,*


*हर तजुर्बा होता है खेल अपनी नजरों का,*
*रेल की खिड़की से देखो,*
*तो पेड़ भी दौड़ते नजर आते है...*
*वक्त बदलता नहीं, इंसान बदल जाते है,*
*बंद आँखों से तो अंधेरे ही नजर आते है,*


*हर तजुर्बा होता है खेल अपनी नजरों का,*
*रेल की खिड़की से देखो,*
*तो पेड़ भी दौड़ते नजर आते है...*